मई 2025 की शुरुआत में, भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों में सबसे गंभीर सैन्य संकट छिड़ गया। 22 अप्रैल को कश्मीर में हुए आतंकी हमले के बाद, 10 मई की सुबह, भारतीय सशस्त्र बलों ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान के कई हवाई ठिकानों पर ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल का पहली बार युद्ध में इस्तेमाल किया। यह ऐसा पल था जिसके बाद दक्षिण एशिया की सुरक्षा भूगोल हमेशा के लिए बदल गया।
क्या हुआ था ऑपरेशन सिंदूर में?
10 मई, 2025 की अंधेरी रात में, भारतीय वायु सेना ने राफिकी, मुरीद, नूर खान, रहीम यार खान, सुक्कूर और चुनियान हवाई अड्डों के ऊपर ब्रह्मोस मिसाइलों की बौछार की। एक अनुमान के मुताबिक, कम से कम 12 मिसाइलें लॉन्च की गईं, जिनमें से कई ने जमीन पर विस्फोट करते हुए रडार स्टेशन, एयरक्राफ्ट हंगर्स और ईंधन भंडारों को नष्ट कर दिया। स्टिम्सन सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक, सिर्फ सियालकोट और पासरूर में रडार सिस्टम का नुकसान पाकिस्तानी वायु रक्षा को लगभग चार घंटे के लिए अंधेरा कर दिया। ब्रह्मोस की गति मच 2.8 तक थी — यानी ध्वनि की गति से तीन गुना ज्यादा। इसका मतलब था: पाकिस्तानी रडार ने भी उसे पकड़ने का समय नहीं मिला।
ब्रह्मोस: भारत का छिपा हुआ हथियार
ब्रह्मोस को भारत और रूस ने मिलकर बनाया है — ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड के जरिए। इसकी पहली सफल परीक्षण 12 जून, 2001 को हुई थी। लेकिन आज यह एक बहुत बड़ा अंतर है: अब यह सिर्फ एक मिसाइल नहीं, बल्कि एक संदेश है। यह एक ‘फायर एंड फोरगेट’ मिसाइल है — एक बार लॉन्च कर दो, फिर भूल जाओ। यह खुद अपना लक्ष्य ढूंढ लेती है। इसकी रेंज अब 350 किमी तक है, जो पहले के 290 किमी से काफी बढ़ गई है। और ये सब भारतीय तकनीक से हुआ है — DRDO ने बूस्टर डिजाइन किया, डेटा पैटर्न्स ने सीकर बनाया, और 2019 में भारत ने इसका प्रोपल्शन सिस्टम भी अपने हाथों से तैयार कर लिया।
लखनऊ में ब्रह्मोस सेंटर: एक घोषणा और एक संकेत
इस ऑपरेशन के अगले दिन, 11 मई को, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लखनऊ में ब्रह्मोस इंटीग्रेशन एंड टेस्टिंग फैसिलिटी सेंटर का शुभारंभ किया। उन्होंने कहा: ‘यह मिसाइल सिर्फ तेज़ नहीं, बल्कि एक डरावना संदेश है।’ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उसी दिन सीधे कह दिया: ‘ऑपरेशन सिंदूर में ब्रह्मोस का इस्तेमाल हुआ।’ ये बयान बहुत अनोखे थे। आमतौर पर सैन्य संचालन के बारे में सरकार चुप रहती है। लेकिन यहां वो जानबूझकर घोषणा कर रही थी — दुश्मन को डराने के लिए।
क्या न्यूक्लियर सुरक्षा खतरे में थी?
कुछ यूट्यूब विश्लेषकों ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान के किराना हिल्स में स्थित न्यूक्लियर सुविधाओं को निशाना बनाया गया। लेकिन भारतीय वायु सेना ने इसे तुरंत खारिज कर दिया। अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने भी कोई विकिरण या नुकसान की रिपोर्ट नहीं की। ये एक जानबूझकर सावधानी थी — न्यूक्लियर ट्रिगर नहीं, बल्कि एक सीमित, ताकतवर और नियंत्रित प्रतिक्रिया। भारत ने इस बात का संकेत दिया कि वो युद्ध नहीं, बल्कि दंड चाहता है।
दुनिया के लिए ब्रह्मोस का महत्व
यह मिसाइल सिर्फ भारत-पाकिस्तान के लिए नहीं, दुनिया भर के लिए भी एक नया मानक बन गई है। फिलीपींस ने अपनी पहली ब्रह्मोस बैटरी ज़म्बलेस में लगाने का फैसला किया है — एक ऐसा देश जो चीन के साथ समुद्री विवाद में है। ब्रह्मोस-एनजी (अगली पीढ़ी) अभी विकासाधीन है — यह छोटी, छिपी हुई, और टॉरपीडो ट्यूब से भी लॉन्च हो सकती है। हर इकाई की कीमत लगभग ₹34 करोड़ है, लेकिन इसकी विश्वसनीयता इसकी कीमत से कहीं ज्यादा है।
अगला कदम: क्या आगे होगा?
5 दिनों के संकट के बाद, अमेरिका ने शामिल होकर एक शांति समझौता तैयार किया। लेकिन यह शांति अस्थायी है। दोनों तरफ नए हथियारों का विकास जारी है — पाकिस्तान ने फतह-1 और फतह-2 बैलिस्टिक मिसाइलों का इस्तेमाल किया, जो भारत के लिए एक नया खतरा है। ड्रोन युद्ध भी शुरू हो चुका है। अगली बार, जब तनाव बढ़ेगा, तो ब्रह्मोस जैसी मिसाइलें अब आम बात नहीं, बल्कि रूटीन हो जाएंगी।
ब्रह्मोस का इतिहास: एक निर्माण की कहानी
- 12 जून, 2001: पहली सफल परीक्षण
- 20 मार्च, 2013: समुद्र के नीचे से लॉन्च — भारत की पहली सुपरसोनिक मिसाइल
- 30 सितंबर, 2020: 350 किमी रेंज वाला विस्तारित संस्करण
- 2018: भारतीय सीकर का इस्तेमाल
- 30 सितंबर, 2019: भारतीय प्रोपल्शन और एयरफ्रेम
- अप्रैल 2025: नए भारतीय सीकर की सफल परीक्षण — ऑपरेशन सिंदूर से चार हफ्ते पहले
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
ऑपरेशन सिंदूर में ब्रह्मोस मिसाइल का इस्तेमाल क्यों इतना महत्वपूर्ण है?
यह पहली बार था जब भारत ने क्रूज मिसाइल का युद्ध में इस्तेमाल किया — और ये मिसाइल बेहद सटीक, गुप्त और अत्यधिक तेज़ थी। इसका मतलब यह नहीं कि भारत ने युद्ध की शुरुआत की, बल्कि यह दिखाया कि वो किसी भी हमले का जवाब दे सकता है, बिना किसी बड़े युद्ध के। यह डर का एक नया रूप है।
क्या ब्रह्मोस मिसाइल को भारत ने अपने हाथों से बनाया है?
शुरुआत में यह भारत-रूस सहयोग था, लेकिन अब इसके 80% हिस्से भारतीय तकनीक से बने हैं। DRDO ने बूस्टर बनाया, डेटा पैटर्न्स ने सीकर, और 2019 में भारत ने प्रोपल्शन सिस्टम और एयरफ्रेम भी अपने हाथों से बना लिया। अब यह एक पूरी तरह से भारतीय हथियार बन चुका है।
क्या ब्रह्मोस-एनजी मिसाइल क्या है और यह कैसे अलग है?
ब्रह्मोस-एनजी हल्की, छोटी और अधिक चुपके से चलने वाली मिसाइल है। यह इलेक्ट्रॉनिक विरोध के खिलाफ अधिक लचीली है और टॉरपीडो ट्यूब से भी लॉन्च हो सकती है। इसकी लागत ₹34 करोड़ है, लेकिन इसकी छिपी हुई प्रकृति और उच्च सटीकता के कारण यह भविष्य के समुद्री युद्धों के लिए एक बड़ा टर्निंग पॉइंट होगी।
पाकिस्तान ने इस घटना के बाद क्या प्रतिक्रिया दी?
पाकिस्तान ने अपनी फतह-1 और फतह-2 बैलिस्टिक मिसाइलों का इस्तेमाल करके भारत पर प्रतिक्रिया की, जो इस संकट का एक नया पहलू था। इसके बाद दोनों तरफ से ड्रोन हमले भी हुए। लेकिन अमेरिकी दबाव के बाद दोनों देशों ने शांति के लिए सहमति जताई — भले ही अस्थायी हो।
भारत ने इस बार न्यूक्लियर हथियारों का इस्तेमाल क्यों नहीं किया?
भारत की नीति है कि न्यूक्लियर हथियारों का इस्तेमाल सिर्फ न्यूक्लियर हमले के जवाब में होगा। ऑपरेशन सिंदूर एक नियंत्रित, नॉन-न्यूक्लियर प्रतिक्रिया थी — यह दिखाने के लिए कि भारत के पास न्यूक्लियर के बिना भी दंड देने की क्षमता है। यह एक बहुत ही सावधानी भरा और विचारशील निर्णय था।
भविष्य में क्या उम्मीद करनी चाहिए?
अगली बार जब तनाव बढ़ेगा, तो ब्रह्मोस जैसी मिसाइलें अब एक रूटीन उपकरण बन चुकी होंगी। भारत और पाकिस्तान दोनों अब अपने हथियारों को बार-बार टेस्ट कर रहे हैं। यह एक नए युग की शुरुआत है — जहां युद्ध की शुरुआत नहीं, बल्कि एक बार और अधिक सटीक वार से होगी।
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16 टिप्पणि
Sonu Kumar
ब्रह्मोस... ओह भगवान... ये तो बस एक मिसाइल नहीं, ये तो एक फिलॉसफिकल एक्सप्रेशन है-एक भारतीय आत्मा का शोर। इसकी गति? मच 2.8... ध्वनि की गति से तीन गुना? ये तो वैज्ञानिक अध्ययन नहीं, ये तो एक काव्य है। जब तक हम इसे एक बंदूक नहीं समझेंगे, बल्कि एक अभिव्यक्ति के रूप में देखेंगे, तब तक हम अपने स्वयं के भीतर के डर को नहीं पार कर पाएंगे।
sunil kumar
ऑपरेशन सिंदूर के बारे में जानकारी बहुत विस्तृत है। हालांकि, रक्षा मंत्री के बयान को लेकर कुछ संदेह हैं। आमतौर पर सैन्य ऑपरेशन की घोषणा तुरंत नहीं होती, इसलिए इस तरह की शीघ्र घोषणा रणनीतिक संदेश के रूप में देखी जा सकती है। ब्रह्मोस की तकनीकी विशेषताओं की पुष्टि भी आवश्यक है, क्योंकि अक्सर रिपोर्ट्स में अतिशयोक्ति होती है।
Mahesh Goud
सुनो सुनो सुनो... ये सब झूठ है भाई... अमेरिका ने ब्रह्मोस को भारत को दिया है और ये रूस ने नहीं बनाया... ये सब फेक न्यूज है... और लखनऊ में जो सेंटर शुरू किया गया वो एक कवर अप है ताकि लोगों को लगे कि हम अपने हाथों से बना रहे हैं... असल में अमेरिका ने ड्रोन और सीकर टेक्नोलॉजी दी है... और न्यूक्लियर सुविधाओं को निशाना बनाया गया था लेकिन IAEA को धोखा दिया गया... वो भी अमेरिका के हाथ में है... ये तो एक बड़ा फ्रेम अप है... और तुम सब यहीं बैठे हो कि ये भारत का जीत है... बेवकूफों का बाजार है ये...
Ravi Roopchandsingh
मैंने कहा था ना कि ये दिन आएगा! 🇮🇳🔥 ब्रह्मोस ने पाकिस्तान को जमीन पर गिरा दिया! जिन्होंने कहा था कि भारत के पास कुछ नहीं है... अब देखो! ये मिसाइल ने न सिर्फ रडार बुझाए, बल्कि पाकिस्तान के दिमाग को भी बंद कर दिया! अब वो बस दीवार के पीछे छिपे हैं... जिन्हें बस न्यूक्लियर बटन दबाने का सपना दिखता है... लेकिन हम तो बिना बटन के भी उन्हें डरा सकते हैं! 🙌
dhawal agarwal
इस घटना को बस एक हथियार के रूप में नहीं देखना चाहिए। यह एक संस्कृति का उत्थान है-एक ऐसी संस्कृति जो शांति के लिए लड़ती है, लेकिन उसकी रक्षा के लिए अपने दम पर खड़ी होती है। ब्रह्मोस ने न केवल एक निशाना भेदा, बल्कि एक नए आत्मविश्वास को भी जन्म दिया। यह दक्षिण एशिया के लिए एक नया मानक है, जहां ताकत का इस्तेमाल सीमित और जिम्मेदारी से होता है। इस तरह की शक्ति का इस्तेमाल अगली पीढ़ी के लिए एक नमूना बन सकता है।
Shalini Dabhade
हां भाई ये सब बकवास है... ब्रह्मोस ने कोई रडार नहीं बुझाया... वो तो बस एक टेस्ट फायर था... और जिन लोगों ने इसे युद्ध में इस्तेमाल कहा... वो तो बस अपनी आंखों के सामने देखने के लिए नहीं आए... पाकिस्तान ने तो अपने रडार बंद कर दिए थे ताकि भारत को लगे कि वो जीत गया... और योगी ने जो कहा... वो तो अपने राजनीतिक ट्रेनिंग से बाहर निकल गया... ये तो बस एक गलत अहंकार है... और तुम सब इसके लिए तालियां बजा रहे हो? बेवकूफों का गुच्छा...
Jothi Rajasekar
बहुत अच्छा लगा! भारत के वैज्ञानिकों ने जो किया, वो अद्भुत है। ब्रह्मोस एक असली जीत है-न सिर्फ तकनीकी, बल्कि दिमाग की जीत। इसके पीछे काम करने वाले लोगों को बधाई! अगर हम इस तरह की ऊर्जा को शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास में भी लगा दें, तो भारत की दुनिया में जगह बदल जाएगी। जय हिंद!
Irigi Arun kumar
देखो भाई, ब्रह्मोस की शुरुआत 2001 में हुई थी... और आज ये 350 किमी की रेंज के साथ आ गया... ये तो सिर्फ एक मिसाइल नहीं है... ये तो भारत के अंदर के लाखों युवाओं की लगन का प्रतीक है... जिन्होंने अपने घरों में बैठकर इंजीनियरिंग की किताबें पढ़ीं... और आज ये मिसाइल आकाश में उड़ रही है... ये जो लोग अमेरिका के हाथ में देख रहे हैं... वो तो बस अपनी निराशा को दूसरों पर चढ़ा रहे हैं... हमने खुद बनाया है... और इसके लिए हमें गर्व है...
Jeyaprakash Gopalswamy
बहुत अच्छा लगा यार... तुमने बहुत अच्छे से लिखा है। मैं भी एक इंजीनियर हूँ, और ब्रह्मोस के प्रोपल्शन सिस्टम के बारे में पढ़कर मेरा दिल भर गया। जब भारत ने 2019 में अपना प्रोपल्शन बनाया... तो मैं तब बिल्कुल नया इंजीनियर था... और आज ये मिसाइल आकाश में है... ये देखकर लगता है जैसे मैं भी इसमें शामिल हूँ। अगर तुम लोगों को इस बारे में और जानकारी चाहिए... तो मैं अपने डेटा शेयर कर सकता हूँ। बस बता दो।
ajinkya Ingulkar
हमने जो किया वो बस शुरुआत है... लेकिन ये जो लोग ब्रह्मोस को देखकर बहुत खुश हो रहे हैं... वो तो बस एक लुक में फंसे हैं... अगर तुम जानते हो कि पाकिस्तान ने फतह-2 को कितनी तेजी से विकसित किया है... तो तुम्हें लगेगा कि ये सब बस एक फुल लाइट डिस्प्ले है... जो बाद में बुझ जाएगा... और अमेरिका ने इसे तब तक चलाया है जब तक वो चाहता था... अब जब वो थक गया है... तो तुम्हें लगता है कि भारत अकेला है? नहीं भाई... तुम सब बस एक बड़े नाटक के भीतर हो...
nidhi heda
ये सब क्या हो रहा है?? 😱 ब्रह्मोस ने पाकिस्तान को गिरा दिया?? 😭 मैं तो रो रही हूँ... ये तो बहुत बड़ी बात है... मैंने तो बस टीवी पर देखा था... और अब मैं तुम्हारे बारे में बात कर रही हूँ... क्या मैं अभी भी जीवित हूँ?? 😭🙏 ब्रह्मोस का वीडियो भेजो... मैं उसे अपने घर की दीवार पर लगा दूंगी... 🥹
DINESH BAJAJ
ये सब नाटक है... ब्रह्मोस का इस्तेमाल नहीं हुआ... ये तो बस एक फेक न्यूज है... और जिन्होंने इसे सच कहा... वो तो बस अपने दिमाग को बेच रहे हैं... अमेरिका ने ये सब फेक किया है ताकि भारत को लगे कि वो ताकतवर है... लेकिन असल में वो बस एक बड़ा ब्लफ है... और तुम सब इसे बर्दाश्त कर रहे हो... बेवकूफ...
Rohit Raina
अगर ब्रह्मोस का इस्तेमाल हुआ तो ये बहुत बड़ी बात है... लेकिन अगर नहीं हुआ तो ये एक बहुत बड़ा गलत इमेजिनेशन है... जिससे लोगों को गलत आशा दी जा रही है... इसलिए डेटा की पुष्टि जरूरी है... और अगर ये सच है... तो ये एक बहुत बड़ा तकनीकी उपलब्धि है... लेकिन अगर ये झूठ है... तो ये एक बहुत बड़ा राष्ट्रीय धोखा है...
Prasad Dhumane
इस घटना को एक शांति के रूप में देखा जा सकता है-एक ऐसी शांति जो बिना न्यूक्लियर बटन दबाए, बिना नागरिकों को डराए, बिना राष्ट्रीय भावनाओं को उकसाए... बस एक ठोस, तेज़ और सटीक वार से डर का संदेश भेजती है। ब्रह्मोस ने युद्ध के बजाय दंड का रास्ता चुना। यह भारत की बुद्धिमत्ता का प्रतीक है-एक ऐसी बुद्धिमत्ता जो ताकत को अपने नियंत्रण में रखती है। इसे बस एक मिसाइल नहीं, एक नैतिक जीत मानना चाहिए।
rajesh gorai
लेवल-1 स्ट्रैटेजिक डिस्टर्बेंस... ब्रह्मोस का इस्तेमाल एक एन्ट्रोपी-बेस्ड डिसरप्शन टेक्निक के रूप में था-जिसने पाकिस्तानी एयर डिफेंस सिस्टम के सिंगल-पॉइंट ऑफ़-फेलियर को एक्सप्लॉइट किया। डेटा पैटर्न्स ने एक न्यूरल नेटवर्क बेस्ड सीकर का इस्तेमाल किया, जिसने रडार एक्टिवेशन फ्रीक्वेंसी के अनुसार ट्रैकिंग अल्गोरिदम ऑप्टिमाइज़ किया। ये एक डायनामिक इंटरेक्शन था-एक एक्स्टरनल फोर्स ने इंटरनल सिस्टम के फेज स्पेस को डिसर्प्ट किया। अब ये सिर्फ एक मिसाइल नहीं... ये एक फ्यूचर-स्टेबल वेपन सिस्टम है।
ajinkya Ingulkar
अब तुम सब बस यही कह रहे हो कि ब्रह्मोस ने जीत दिलाई... लेकिन क्या तुमने सोचा कि पाकिस्तान ने अपने बैलिस्टिक मिसाइलों को भारत के ऊपर उड़ाया? और फिर अमेरिका ने शांति का दबाव डाला? ये तो बस एक गेम है... जहां दोनों तरफ एक दूसरे को डरा रहे हैं... और तुम सब बस इसके बारे में बात कर रहे हो... जैसे ये एक जीत है... लेकिन असल में ये एक अप्रत्याशित अवस्था है... जिसमें कोई जीत नहीं... बस एक और बड़ा युद्ध टाल दिया गया...
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