चुनावी बॉन्ड योजना में भ्रष्टाचार के आरोप
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और कई अन्य प्रमुख नेताओं के खिलाफ चुनावी बॉन्ड योजना के अंतर्गत धन उगाही का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज की गई है। यह एफआईआर 28 सितंबर, 2024 को तिलक नगर पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई। शिकायत के अनुसार, इन नेताओं ने चुनावी बॉन्ड योजना का दुरुपयोग कर कंपनियों से जबरन पैसे वसूल किए हैं।
एफआईआर का दावा
एफआईआर एक निजी शिकायत पर आधारित है जो जनाधिकार संघर्ष परिषद (जेएसपी) के सह अध्यक्ष आदर्श आर. अय्यर ने की थी। अय्यर का आरोप है कि निर्मला सीतारमण, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारी, जे.पी. नड्डा, बीजेपी कर्नाटक के अध्यक्ष बी.वाई. विजयेंद्र और वरिष्ठ नेता नलीन कुमार कटील समेत अन्य आरोपियों ने कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों से जबरन धन वसूली की है। उन्होंने आरोप लगाया कि इस योजना के तहत ₹8000 करोड़ से अधिक का लाभ उठाया गया।
शिकायत के मुताबिक, ईडी का इस्तेमाल करते हुए कई कंपनियों के कार्यालयों पर छापेमारी, सीजर और गिरफ़्तारियां की गईं और उनके सीईओ, एमडी और शीर्ष अधिकारियों को फर्जी मामलों में फंसाकर उनसे जबरन बॉन्ड खरीदवाए गए। ये बॉन्ड बाद में आरोपित नेताओं द्वारा नकद किए गए।
कानूनी आरोप और प्रकरण
इस एफआईआर में आरोपियों पर आईपीसी की धारा 384 (जबरन वसूली के दंड) और धारा 120बी (आपराधिक षडयंत्र) के अंतर्गत आरोप लगाए गए हैं। इसके साथ ही धारा 34 (सामान्य इरादे से किए गए कार्य) का भी उल्लेख है। अय्यर ने पहले 30 मार्च, 2024 को तिलक नगर पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी और अप्रैल 2024 में डीसीपी बेंगलुरु साउथ ईस्ट के पास भी गए थे। जब कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो उन्होंने विशेष अदालत में सीआरपीसी की धारा 156(3) के अंतर्गत आवश्यक निर्देशों की मांग की।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
इस मामले में राजनीतिक प्रतिक्रियाओं का दौर भी शुरू हो गया है। बीजेपी ने इन आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताते हुए खारिज किया है और कहा है कि उनके नेताओं पर लगाए गए सारे आरोप बेबुनियाद हैं। विपक्षी दलों ने इन आरोपों को गंभीर बताते हुए न्यायिक जांच की मांग की है।
चुनावी बॉन्ड योजना की उत्पत्ति
चुनावी बॉन्ड योजना भारत में राजनीतिक दलों को मिलने वाले अज्ञात चंदे को पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से 2018 में शुरू की गई थी। इस योजना के अधीन राजनीतिक दलों को बैंक के माध्यम से धन प्राप्त होते हैं। हालांकि, इस योजना की पारदर्शिता और उपयोग को लेकर विभिन्न हलकों से समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं।
अगले कदम
एफआईआर दर्ज होने के बाद अब देखना होगा कि कर्नाटक पुलिस इस मामले में आगे क्या कदम उठाती है। यह भी संभव है कि इस मुद्दे पर उच्च स्तर की जांच गठित की जाए। अगर आरोप सही साबित होते हैं तो यह वर्तमान सरकार के लिए एक बड़ा मुद्दा बन सकता है।
आम जनता और राजनीतिक विश्लेषक इस मामले पर नज़र बनाए हुए हैं, और यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में इस प्रकरण की और क्या-क्या सचाई सामने आती है।
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