सासाराम में लॉटरी टिकीट तस्करी का बड़ा घोटाळा
बिहार के रोहतास जिले में स्थित गजानन सिद्धी विनायक चावल मिल के गोरखपुर गांव में एक चौंकाने वाली खोज हुई। आर्थिक अपराध इकाई (EOU) ने बताया कि इस मिल में करोड़ों रुपये की लॉटरी टिकटों का छिपा भण्डार मिला। यह टिकटें असल में अवैध लॉटरी मैफ़िया द्वारा छपे थे, जो स्थानीय गरीब परिवारों को आर्थिक रूप से नुचलते आ रहे थे।
जब पुलिस ने यह मामला जिला स्तर की टीम को सौंपा, तो तुरंत एक संयुक्त ऑपरेशन का योजना बनायी गई। इस ऑपरेशन में स्पेशल टास्क फ़ोर्स (STF), जिला पुलिस और डिस्ट्रिक्ट इंटेलिजेंस यूनिट (DIU) ने एक साथ काम किया। चार अलग‑अलग जगहों पर एक ही समय पर डकैती जैसी रैफ़लें की गईं – दो बाराह पथर इलाके में, एक मोहं बिघा (देहरी टाउन) में और मुख्य लक्ष्य चावल मिल में।
रैफ़लों के दौरान, आधिकारिक स्रोतों ने बताया कि 6 लोगों को हिरासत में लिया गया। इनका नाम है राजेश गुप्ता (बारह पथर), ऋषु कुमार, खीरु कुमार, शिवम कुमार, ओम प्रकाश पासवान और उनका बेटा सोनू कुमार। इनके अलावा, बड़ी मात्रा में लैपटॉप, मोबाइल फोन और दस्तावेज़ मिले जो लॉटरी निर्माण और वितरण की पूरी साज‑सज्जा को दर्शाते थे।

जांच का विस्तार और भविष्य के कदम
रैफ़ल के बाद, बिहार लॉटरी माफिया के खिलाफ जांच तेज़ी से आगे बढ़ रही है। एसपी रोहतास रोषन कुमार ने कहा कि यह ऑपरेशन अभी भी चल रही है और इस क्षेत्र में बंधे हुए सभी नेटवर्क को उजागर करने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने बताया कि पुलिस ने रैफ़ल के आसपास के इलाकों में गतिशीलता को रोक दिया है ताकि साक्ष्य सुरक्षित रह सकें।
अधिक जानकारी के अनुसार, इस लॉटरी रिंग का कार्यक्षेत्र केवल रोहतास तक सीमित नहीं था। उनके पास कई छोटे‑बड़े शहरों में एजेंसियां थीं, जहाँ वे नकली टिकट छापते और बेचते थे। इस प्रक्रिया में अक्सर स्थानीय प्राथमिक स्कूलों, छोटी दूकानों और यहाँ तक कि घरेलू कार्यशालाओं को भी शामिल किया जाता था, जिससे यह सब गुप्त रहता।
जाँच में मिली लैपटॉपों में लॉटरी के कई रिकॉर्ड, बैंक खाता विवरण और ड्रैगन‑ड्राफ्ट की तरह छड़ी हुई योजना की फ़ाइलें थीं। इन दस्तावेज़ों से पता चला कि हर महीने लगभग 10‑15 लाख टिकट बेचे जाते थे, जिनमें से अधिकांश के खरीदारों ने अत्यधिक पैसा खो दिया। कई परिवार घोषित किए गए कि उन्होंने अपने जीवन यापन के लिए एजी रसोई का उपयोग किया, लेकिन लॉटरी में पैसे लगाकर सब कुछ खो बैठा।
जांच टीम ने कहा कि अब उनका फोकस उन प्रमुख साज‑सज्जा वालों को पकड़ना है जो इस पूरे नेटवर्क की योजना बनाते हैं। यह लोग अक्सर शहर के बाहर के छोटे‑छोटे गांवों में रहते हैं, जिससे पुलिस के लिए उनका पता लगाना मुश्किल हो जाता है। लेकिन इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य और मोबाइल डेटा ट्रेस करने से उन्होंने कई संभावित आरोपी के नाम सामने रखे हैं।
जब इस मामले को स्थानीय लोगों ने देखा, तो कई लोग राहत की साँस ले रहे हैं। कई शहरवालों ने कहा कि इस लॉटरी माफिया के कारण उनका परिवार दो‑तीन साल से गरीब अवस्था में फँसा था। अब जब व्यवस्था को ध्वस्त किया जा रहा है, तो उनका मानना है कि आर्थिक पुनरुद्धार का मार्ग खुल रहा है।
राज्य सरकार ने भी इस घटना को गंभीरता से लिया है। आर्थिक अपराध इकाई ने कहा कि वे लॉटरी के अलावा अन्य वित्तीय धोखाधड़ी पर भी नजर रखेंगे, जैसे कि नकली निवेश योजनाएँ और छल-कपट वाले कर्ज़। इस दिशा में, सरकार ने बतौर 'जबरदस्त' इस तरह की घृणास्पद आर्थिक गतिविधियों के खिलाफ कड़ी सजा का प्रस्ताव रखा है।
अंत में, यह केस बिहार में व्यवस्थित आर्थिक अपराधों को रोकने के लिए एक बड़ा उदाहरण बन गया है। पुलिस के सहयोगी कार्य, जाँच की गहनता और जिला स्तर पर एकजुट प्रयत्नों ने यह दिखाया कि सही दिशा में कदम उठाने से किसी भी औद्योगिक जाल को तोड़ा जा सकता है। अब देखते हैं कि इस जांच के परिणाम कितनी जल्दी लॉटरी मैफ़िया के बड़े-रूप को उजागर करेंगे और पीड़ित परिवारों को राहत मिलेगी।
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