जब डॉ. राजन खन्ना, इमिग्रेशन विशेषज्ञ और इंडियन काउंसिल ऑन इमिग्रेशन ने कहा कि 2025 में F-1 वीजा की देरी भारतीय छात्रों के भविष्य को धूमिल कर रही है, तो इस बात का असर सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर नहीं, बल्कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर भी पड़ रहा है।
वर्तमान स्थिति और सांख्यिकीय पृष्ठभूमि
अमेरिकी F-1 वीजा जारी करने की दर इस साल मार्च‑मई के बीच 27 % गिर गई है। 2024 में उसी अवधि में 13,478 वीजा जारी हुए थे, जबकि 2025 में केवल 9,906 ही वीजा मिले। यह गिरावट न केवल नंबरों में स्पष्ट है, बल्कि भारत से आने वाले छात्रों की आशाओं में भी दरार डाल रही है।
- 2024 Q1‑Q2 में जारी वीजा: 13,478
- 2025 Q1‑Q2 में जारी वीजा: 9,906
- डाउनट्रेंड की अवधि: मार्च‑मई 2025
- प्रभावित भारतीय छात्रों का अनुमानित प्रतिशत: 33 %
- कुल अंतर्राष्ट्रीय छात्र (US): 1 मिलियन, जिनमें 330,000 + भारतीय
जून 2025 के तीसरे सप्ताह से वीजा अपॉइंटमेंट में तेज गिरावट देखी गई, जब अमेरिकी दूतावासों को नया निर्देश मिला कि सोशल मीडिया जांच का दायरा बढ़ाया जाए।
वीजा प्रक्रिया में हुए परिवर्तन
अब आवेदकों से पाँच साल के दौरान उपयोग किए गए सभी सोशल मीडिया प्रोफ़ाइल्स की विस्तृत सूची माँगना अनिवार्य हो गया है। अमेरिकी दूतावास, नई दिल्ली में स्थित, अब सार्वजनिक पोस्ट, लाइक्स, और यहाँ तक कि प्राइवेट ग्रुप्स की जाँच कर सकता है। अधिकारी हर ऐसे कंटेंट को स्कैन करते हैं जो "अमेरिका के प्रति शत्रुता" या "चरमपंथी विचारों" का संकेत दे।
इंटरव्यू की लंबाई घटकर तीन मिनट से भी कम हो गई है, लेकिन निर्णय अत्यधिक कठोर हो गया है। "मैं प्रोग्राम के दौरान सोच लूंगा" जैसे अस्पष्ट उत्तर को अब रेड‑फ़्लैग माना जाता है। साथ ही वित्तीय क्षमता की जाँच विस्तारित की गई है—बैंक स्टेटमेंट, लोन की शर्तें, और प्रायोजन क्षमता पर गहराई से सवाल पूछे जाते हैं।
प्रस्तावित नियम और उनका प्रभाव
डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (DHS) ने 28 अगस्त को एक मसौदा नियम प्रकाशित किया है, जिसमें "ड्यूरेशन ऑफ स्टेटस" (D/S) प्रणाली को समाप्त करने की योजना है। अगर यह नियम पारित हो गया, तो F‑1 वीजा की अधिकतम अवधि चार साल तक सीमित होगी। इसके बाद छात्रों को "एक्सटेंशन ऑफ स्टे" (EOS) के लिए DHS से पुन: आवेदन करना पड़ेगा।
यह बदलाव लगभग 10 लाख अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को प्रभावित कर सकता है, जिनमें से एक तिहाई से अधिक भारतीय हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह नई नीति गैर‑कानूनी उपस्थिति की गणना को बदल देगी, जिससे कई छात्रों को वीजा रद्द या वैधता समाप्त हो सकती है।
स्टूडेंट्स और विशेषज्ञों की प्रतिक्रियाएँ
आदि से आपराधिक जांच तक का सफर बहुत कठिन लग रहा है, ऐसा कई छात्रों ने बताया। "मैंने दो साल पहले I‑20 फॉर्म लिया था, लेकिन अब मेरे सत्र की शुरुआत में ही वीजा नहीं मिल रहा," एक प्रथम वर्ष के मैकेनिकल इंजीनियर ने कहा।
इसी बीच सिता रामु, शिक्षा मंत्रालय की विदेश नीति सलाहकार ने कहा कि भारत सरकार इस मुद्दे को हल करने के लिए अमेरिकी अधिकारियों के साथ डायलॉग शुरू कर रही है। लेकिन अब तक कोई ठोस समाधान नहीं मिला है।
अन्य फेयरशिप और छात्र समूहों ने भी संयुक्त रूप से एक पेटिशन दायर किया है, जिसमें कहा गया है कि "अमेरिका के शैक्षणिक अवसरों की पहुंच को बाधित करना अनैतिक है"।
आगे क्या हो सकता है
यदि प्रस्तावित नियम लागू होते हैं, तो अनुमान है कि 420,000 से अधिक भारतीय छात्रों—जो F, J, और I वीजा धारण करते हैं—को फिर से आवेदन प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा। यह न केवल उनकी पढ़ाई में देरी करेगा, बल्कि आर्थिक बोझ भी बढ़ाएगा, क्योंकि SEVIS शुल्क ($350) और अतिरिक्त वीजा फीस को कई बार दोहराना पड़ेगा।
फॉल 2025 इनटेक का समय भी पास आने वाला है। फॉल 2025 इनटेकवाशिंगटन डी.सी. के साथ, आशा थी कि नए छात्रों की संख्या में उछाल आएगा, परंतु वीजा प्रतिबंधों के कारण यह आशा अभी धुंधली दिख रही है।
सभी संकेत यह बता रहे हैं कि अभी जल्दी कार्रवाई न की गई तो कई भारतीय प्रतिभा विदेश में ही फँसी रह सकती है। इसलिए सरकार, विश्वविद्यालयों और निजी संस्थानों को मिलकर एक स्थायी समाधान ढूँढना ज़रूरी है।
Frequently Asked Questions
F-1 वीजा में देरी का मुख्य कारण क्या है?
मुख्य कारण नई सोशल मीडिया जांच नीति है, जिसमें पिछले पाँच साल के सभी प्रोफ़ाइल का विस्तृत विवरण मांगा जाता है, साथ ही वित्तीय क्षमता की जाँच भी कड़ी हो गई है।
क्या प्रस्तावित DHS नियम भारतीय छात्रों को सीधे प्रभावित करेंगे?
हाँ, नए नियम के तहत F-1 वीज़ा की वैधता चार साल तक सीमित होगी और उसके बाद विस्तारित करने के लिए अतिरिक्त आवेदन प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा, जिससे लगभग 3‑लाख भारतीय छात्रों को असर पड़ेगा।
वॉशिंगटन में फॉल 2025 इनटेक कब शुरू होगा?
फॉल 2025 इनटेक का आधिकारिक प्रारम्भ 1 सितंबर 2025 को निर्धारित है, लेकिन वीज़ा प्रतिबंधों के कारण कई छात्रों को अब भी अपॉइंटमेंट मिलने में कठिनाई हो रही है।
क्या भारतीय सरकार इस मुद्दे पर कोई कदम उठा रही है?
भारत के विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी के साथ संवाद शुरू कर दिया है, और कई छात्र संगठनों के साथ मिलकर एक पेटिशन भी दायर किया गया है, परन्तु अभी तक कोई ठोस समझौता नहीं हुआ है।
स्टूडेंट वीज़ा प्रक्रिया में सुधार के लिए क्या सुझाव दिए जा रहे हैं?
विशेषज्ञों का मानना है कि सोशल मीडिया जांच को सीमित किया जाए, वित्तीय दस्तावेज़ों के मानदंड को स्पष्ट किया जाए, और इंटरव्यू समय को बढ़ाकर अधिक गहन मूल्यांकन किया जाए ताकि योग्य छात्रों को जल्दी वीज़ा मिल सके।
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rin amr
वर्तमान F‑1 वीज़ा देरी का आंकड़ा केवल कागजी समस्या नहीं है; यह हमारे शैक्षिक माहौल में एक गहरा structural असंतुलन दिखाता है। वीज़ा आदेशों में अनावश्यक सोशल‑मीडिया जाँच की विस्तृतीकरण से न केवल प्रक्रियात्मक बोझ बढ़ा है, बल्कि इस प्रक्रिया में उन छात्रों की गोपनीयता भी लुप्त हो रही है, जिससे यहाँ तक पहुँचने के लिये कठिन मेहनत कर चुके हैं। यदि हम इस व्यवधान को जल्द से जल्द ठीक नहीं करेंगे, तो भारत के शीर्ष टैलेंट्स विदेश में ही फँसे रहेंगे, जिससे हमारे देश की भविष्य की कार्यशक्ति पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा।
Jai Bhole
देश के भविष्य को विदेश के नियमों पर हे़रान होना अब अस्वीकार्य है-भाई, हम अपने बच्चे को अपने ही हाथों में उगाने की कोशिश कर रहे हैं, पर हॉस्पिटैलिटी ने सिटिज़न को फंसाया है। ये सारी "सोशल मीडिया स्कैन" की बातें बेवकूफी है, असली समस्या तो है कि अमेरिका अपने सुरक्षा को ढूंढते‑ढूंढते हमारे बेहतरीन दिमाग को निकाल रहा है। इतना ही नहीं, चार साल की सीमा भी हमारे युवा के सपनों को छोटा कर रही है, जैसे पत्थर में से पन फूलना। हम सबको एकजुट होकर अपनी आवाज़ उठानी चाहिए, नहीं तो हमारे भविष्य की पुस्तकों में ये अध्याय सिर्फ एक जबरदस्ती का टैग बन कर रह जाएगा।
rama cs
इथे देखल जाव, वीज़ा देरी के पीछे के macro‑level systemic inertia को समझना आवश्यक है, न कि सिर्फ surface‑level procedural delays को ही criticize करना। "संक्रमणात्मक रूप से प्रकट होने वाले bureaucratic latency" केवल administrative inertia नहीं, बल्कि geopolitical equilibrium के प्रति एक structural blind‑spot दर्शाता है। इस परिप्रेक्ष्य में, social‑media audit का policy instrument एक normative heuristic बन गया है, जो legitimate security concerns को over‑regulate कर रहा है, जिससे neuro‑cognitive burden छात्रों पर अनावश्यक रूप से बढ़ रहा है। इस प्रकार की feedback‑loop को disrupt करना आवश्यक है, अन्यथा हम academic‑migration के equilibrium को स्थायी रूप से distort करेंगे।
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