जब डिबर्घ्य दास, वेंचर कैपिटलिस्ट और टेक इन्फ्लुएंसर ने सोशल मीडिया X पर एक ध़ाकड़ चेतावनी दी, तो इंडियन स्टूडेंट समुदाय ने तुरंत प्रतिक्रिया दिखायी। उन्होंने कहा कि अगले पाँच सालों में 150,000 से अधिक भारतीय स्नातक यूएस‑अमेरिका में नौकरी नहीं पा सकते। यह बात उसी समय सामने आई जब भारतीय छात्रों की मास्टर डिग्री के लिए अमेरिका में अभ्यर्थी संख्या पाँच साल में तीन गुना होकर लगभग 3,00,000 तक पहुँच गई है।
यह अलार्म केवल व्यक्तिगत राय नहीं, बल्कि कई आँकड़ों और नीति‑परिवर्तनों का संगम है। इस लेख में हम देखें‑गे कि कैसे ट्रम्प प्रशासन की कड़ी वीज़ा नीति, टेक सेक्टर की मंदी और बढ़ती प्रतिस्पर्धा मिलकर इस ‘हनीमून’ को खत्म कर रही है। साथ ही, गुरुग्राम‑आधारित GSF Accelerator के सीईओ राजेश सहानि ने भी वही चेतावनी दी है।
पृष्ठभूमि और प्रचलित प्रवृत्ति
पिछले दो दशकों में भारत से यूएस‑अमेरिका में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या में लगातार इज़ाफ़ा हुआ। 2000 में लगभग 75,000 छात्र थे, 2020 तक यह आंकड़ा 1,00,000 से ऊपर चला गया। 2022‑2023 में महामारी‑के‑बाद, केवल COVID‑के कारण नहीं, बल्कि भारतीय मार्जिनल एन्हांस्ड स्कीम्स और H‑1B वीज़ा को आसान बनाने के चरणों ने इस प्रवाह को तेज किया। इस दौर में कई छात्रों ने सोचा कि अमेरिकी विश्वविद्यालय एक ‘टिकट’ हैं—मेंहगे फ़ीस और लोन लेकर, फिर ‘हाई‑पे’ टेक जॉब्स मिलेंगे। लेकिन अब वह ‘टिकट’ धुंधला दिख रहा है।
डिबर्घ्य दास के आंकड़े और विश्लेषण
सैन फ्रांसिस्को में स्थित अपने निवेश फर्म के माध्यम से डिबर्घ्य दास ने पिछले आठ महीनों के डेटा को संकलित किया। उन्होंने बताया कि 2021‑2022 में भारतीय छात्रों की कुल संख्या 2,00,000 थी, जबकि 2024‑2025 में यह 3,00,000 तक पहुँच गई। इसका मतलब है 50% की तेज़ वृद्धि—पर यह वृद्धि नौकरी‑बाजार की क्षमता से तेज़ रही।
- 150,000 से अधिक भारतीय ग्रेजुएट 0‑2 साल एक्सपीरियंस वाले पदों के लिए अब ‘अधिक प्रतिस्पर्धी’ हो गए हैं।
- टेक कंपनियों के हायरिंग फ़्रीज़ के कारण औसत शुरुआती वेतन 2022 में $150,000 से घटकर $110,000 हो गया।
- वर्तमान में केवल 35% छात्र ही पूर्ण‑कालिक जॉब ऑफ़र पाते हैं; बाकी को पार्ट‑टाइम, इंटर्नशिप या फ्रीलांस काम करना पड़ता है।
डिबर्घ्य दास ने कहा, “इंडियन स्टूडेंट्स के पास अब वह ‘इज़ी‑पाथ’ नहीं है जिसमें आप बस मास्टर डिग्री करके $200,000 की शुरुआती सैलरी ले सकते हैं।” उन्होंने आगे बताया कि विशेषकर AI‑ड्रिवन स्टार्ट‑अप की फंडिंग में गिरावट और बड़े कंपनियों के आउटसोर्सिंग मॉडल में बदलाव ने एंट्री‑लेवल जॉब्स को और अधिक सीमित कर दिया है।
राजेश सहानि की चेतावनी
राजेश सहानि, जो GSF Accelerator के संस्थापक‑सीईओ हैं, ने अपनी X पोस्ट में कहा: “USA, Canada और UK में अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए कोई जॉब नहीं है। हनीमून खत्म हो गया, माता‑पिता को करोड़ों खर्च करने से पहले दो बार सोचना चाहिए।” वह इस बात को दो बार दोहराते हैं कि “इंजीनियरिंग के छात्र, खासकर IIT‑इयन, पहले आसान रास्ता रखते थे—अमेरिका में मास्टर कर, $200,000 की सैलरी वाली टेक पोजीशन पाना। अब वह रास्ता नहीं रहा।”
राजेश के बयान का आधार भी आँकड़ों पर है। उनका एक सर्वेक्षण, जो 2024 के अंत में 5,000 भारतीय छात्रों को इंटरव्यू करके तैयार किया गया, बताता है कि 68% ने कहा कि वे अपनी पढ़ाई के दौरान पार्ट‑टाइम जॉब नहीं ले पाए क्योंकि वीज़ा नियम अधिक सख्त हो गए हैं। वहीं, 54% ने कहा कि उन्होंने शैक्षणिक ऋण (अक्सर ₹15‑20 लाख) का बोझ अब झेल नहीं पा रहे हैं।
नौकरी बाजार पर असर और नीति कारक
ट्रम्प प्रशासन (2017‑2021) ने ‘हॉस्पिटैलिटी‑ट्रैवल‑इमिग्रेशन‑स्पेशल’ प्रावधान में बदलाव किए, जिससे H‑1B वीज़ा की आवंटन प्रक्रिया में देरी और कठोर मानदंड आए। इस नीति का असर आज भी छात्रों पर पर रहा है; कई आईटी कंपनियों ने अब विदेशी इंटर्न को पार्ट‑टाइम पेरोल पर काम करने से मना कर दिया है। परिणामस्वरूप, 2023‑2024 में भारतीय छात्रों की औसत कार्य घंटे 15 घंटे/हफ़्ता से घटकर 9 घंटे/हफ़्ता रह गई।
साथ ही, यूएस‑अमेरिका की आर्थिक मंदी ने फॉर्च्यून 500 कंपनियों के हायरिंग बडजेट को 12% कम कर दिया। विशेषकर सिलिकॉन वैली में स्टार्ट‑अप फंडिंग में 2022‑2023 में 40% की गिरावट आई, जिससे “जॉब‑क्रिएशन‑पाइपलाइन” छोटा हो गया। ये सभी कारक मिलकर “इंडियन ग्रेजुएट जॉब‑क्राइसिस” को तेज़ कर रहे हैं।
भविष्य की दिशा और सलाह
निवेशकों और नीति‑निर्माताओं के लिए सबसे बड़ा सवाल है: क्या भारत‑अमेरिका शिक्षा‑रोज़गार मॉडल फिर से जीवित हो सकता है? कुछ विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि छात्रों को अब “रिलेटिव बेनिफिट” के आधार पर कोर्स चुनना चाहिए—जैसे डेटा एनालिटिक्स, साइबर‑सेक्यूरिटी जैसे क्षेत्रों में स्नातक जो स्थानीय कंपनियों की तेज़ी से ज़रूरतें पूरी करते हैं।
दूसरी ओर, भारतीय सरकार भी अपनी ‘स्टडी अब्रॉड’ स्कीम को री‑डिज़ाइन कर रही है, जिससे छात्रों को अधिक स्कॉलरशिप और बैक‑डेटा‑जॉब फोकस्ड इंटर्नशिप उपलब्ध कराई जा सके। एक शैक्षणिक सलाहकार, डॉ. सागर पटेल, कहते हैं: “इंडियन छात्रों को अब ‘ड्यूरिंग‑स्टडी‑जॉब’ मॉडल अपनाना होगा—अर्थात पढ़ाई के साथ पार्ट‑टाइम काम, फ्रीलांस प्रोजेक्ट्स, या इंटर्नशिप को अधिक महत्व देना।”
अंत में, यह स्पष्ट है कि “बिना नौकरी के ग्रेजुएशन” अब सिर्फ़ एक संभावित जोखिम नहीं, बल्कि कई बच्चों के सामने वास्तविक ख़तरा बन चुका है। परिवारों को अब खर्च‑आधारित निर्णय लेने से पहले जॉब‑मार्केट की वास्तविकता को समझना होगा।
Frequently Asked Questions
क्या सभी भारतीय छात्रों को नौकरी नहीं मिलेगी?
नहीं, पूरी तरह से नहीं। आंकड़े बताते हैं कि लगभग 35% स्नातक अभी भी पूर्ण‑कालिक नौकरी पा रहे हैं। हालांकि, 0‑2 साल अनुभव वाले छात्रों के लिए नौकरियों की उपलब्धता पहले से 40‑50% तक घट गई है, इसलिए प्रतिस्पर्धा बहुत ज़्यादा बढ़ गई है।
कौन से देशों में भारतीय छात्रों को सबसे ज्यादा जोखिम है?
वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और यूनाइटेड किंगडम सबसे अधिक जोखिम वाले माने जा रहे हैं। इन देशों में वीज़ा नियम कड़े हुए हैं और टेक कंपनियों की हायरिंग स्लो‑डाउन ने नौकरियों की संख्या घटा दी है।
इंडियन छात्रों को कौन‑सी शिक्षा दिशा अपनानी चाहिए?
डेटा साइंस, साइबर‑सेक्यूरिटी, क्लाउड कंप्यूटिंग और हेल्थ‑टेक जैसे हाई‑डिमांड क्षेत्रों में स्पेशलाइज़ेशन करना लाभदायक रहेगा। ये क्षेत्रों में स्थानीय इंटर्नशिप और पार्ट‑टाइम प्रोजेक्ट्स आसानी से मिलते हैं, जिससे स्नातक के बाद रोजगार पाना आसान हो जाता है।
क्या भारतीय सरकार इस समस्या को हल करने में मदद कर रही है?
सरकार ने ‘स्टडी अब्रॉड’ स्कीम को री‑डिज़ाइन करने की घोषणा की है, जिसमें अधिक स्कॉलरशिप और इंटर्नशिप लिंकिंग शामिल होगी। लेकिन प्रभावी परिवर्तन के लिए दीर्घकालिक नीति सुधार और निजी‑सार्वजनिक साझेदारी की आवश्यकता है।
ट्रम्प प्रशासन की नीतियों का अभी भी क्या असर है?
ट्रम्प नीति में बदलाव का सीधा असर वीज़ा प्रोसेसिंग टाइम और पार्ट‑टाइम काम करने की अनुमति पर पड़ा है। वर्तमान प्रशासन ने कुछ नरमी दिखायी है, पर अभी भी H‑1B वीज़ा के लिए कठोर मानक मौजूद हैं, जिससे अंतरराष्ट्रीय छात्रों के रोजगार विकल्प सीमित रहेंगे।
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somiya Banerjee
यो खबर सुनके पूरी कक्षा में हंगामा मच गया, अब स्कूल में भी प्रोफेसर लोग ये बता रहे हैं कि पढ़ाई के साथ पार्ट‑टाइम जॉब कैसे लेना चाहिए। दिल से आशा है कि सरकार जल्दी स्कॉलरशिप बढ़ाएगी, नहीं तो लोग घर-घर में निराशा से भरे रहेंगे।
Rahul Verma
डिबर्घ्य दास का डेटा सिर्फ़ एक बड़ी साज़िश का हिस्सा है, हर साल वही लोग हमें डराते रहते हैं ताकि उनका इन्फ्लुएंसर स्टेटस बना रहे। H‑1B वीज़ा की मार्डीगर नीति पर गहरा राज़ है, जिसे सरकार ही नहीं, बड़े कॉरपोरेट भी छुपा रहे हैं।
Vishnu Das
भाई, मैं देख रहा हूँ कि कई छात्रों ने अभी भी आशा नहीं छोड़ी है। कुछ दोस्त कह रहे हैं कि वे डेटा साइंस में प्रोजेक्ट कर रहे हैं, ओपन‑सोर्स योगदान दे रहे हैं और स्थानीय फ्रीलांस प्लेटफ़ॉर्म पर काम ढूँढ रहे हैं। यह सच में एक रास्ता है, बस धैर्य रखो।
Ajay Kumar
अरे यार, ये आंकड़े तो बिलकुल सही है, लेकिन हर चीज़ का दो‑ पक्ष है। करियर को सिर्फ़ ग्रेजुएशन के बाद की नौकरी से नहीं, बल्कि साइड‑हसल, स्टार्ट‑अप इंटर्नशिप से भी देखा जा सकता है। आजकल कई लोग इंडो‑टेक में जॉब कर रहे हैं, जहाँ पैकेज थोड़ा कम है लेकिन ग्रोथ तेज़ है।
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