हिंदुजा परिवार के सदस्यों को मिली भारी सजा
स्विट्ज़रलैंड की एक अदालत ने भारतीय अरबपति हिंदुजा परिवार के चार सदस्यों को अपने जिनेवा स्थित विला में सेवकों का शोषण करने के आरोप में कठोर सजा सुनाई है। यह मामला 2018 में शुरू हुआ था जब स्विस अधिकारियों ने विला, हिन्दुजा बैंक के कार्यालयों और अन्य स्थानीय कारोबारों पर छापा मारकर दस्तावेज और हार्ड ड्राइवें जब्त कीं थीं।
वरिष्ठ सदस्यों को दी गई सजा
इस केस में परिवार के वरिष्ठ सदस्य, 78 वर्षीय प्रकाश हिंदुजा और 75 वर्षीय कमल हिंदुजा को 4 1/2 साल की सजा सुनाई गई है। दोनों ही खराब स्वास्थ्य के कारण सुनवाई में उपस्थित नहीं हो सके। दूसरी ओर, अजय हिंदुजा और उनकी पत्नी नम्रता को 4 साल की सजा दी गई है। यह दोनों भी कोर्ट में उपस्थित नहीं थे।
अजय हिंदुजा, उनकी पत्नी और उनके माता-पिता पर यह आरोप थे कि उन्होंने भारत से कर्मचारियों को स्विट्ज़रलैंड बुलाकर उन्हें स्थानीय दर से बहुत कम वेतन में काम करवाया। अदालत ने पाया कि कर्मचारियों के पासपोर्ट जब्त कर लिए गए थे और उन्हें छोड़ने की अनुमति नहीं दी जाती थी। उनके काम के घंटों को बढ़ाया गया और उन्हें बहुत कम भुगतान किया गया।
व्यवसाय प्रबंधक को निलंबित सजा
परिवार के व्यापार प्रबंधक, नजीब ज़िआज़ी को 18 महीने की निलंबित सजा दी गई है। हिंदुजा परिवार के पास वित्त, मीडिया, और ऊर्जा क्षेत्रों में व्यापक हित हैं और उनकी छह सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाली भारतीय कंपनियों में हिस्सेदारी है, जिनकी संयुक्त संपत्ति कम से कम 14 अरब डॉलर है।
फैसले के बाद, हिंदुजा परिवार ने निर्णय की कड़ी निंदा की और उच्च अदालत में अपील करने का ऐलान किया है। उनका कहना है कि उनके द्वारा कर्मचारियों के साथ सम्मानपूर्वक बर्ताव किया गया था।
जांच और छानबीन
स्विस अधिकारियों ने कानूनी शुल्क और दंड का भुगतान सुनिश्चित करने के लिए उनके आभूषण और अन्य संपत्ति जब्त कर ली है। 2018 में शुरू हुई जांच के तहत विला और अन्य कारोबारों पर छापा मारा गया था और महत्वपूर्ण दस्तावेज और हार्ड ड्राइव जब्त की गई थी।
स्विट्ज़रलैंड की अदालत का यह निर्णय वैश्विक स्तर पर सेवक शोषण के खिलाफ की गई एक महत्वपूर्ण कार्रवाई मानी जा रही है। इससे यह स्पष्ट संदेश जाता है कि किसी भी प्रकार के मानवाधिकार हनन को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा चाहे वह कितना ही प्रभावशाली या संपन्न व्यक्ति क्यों न हो।
यह घटना हिंदुजा परिवार के लिए एक गंभीर हिदायत साबित हो सकती है। साथ ही, यह मामला उन तमाम गरीब और असमर्थ कर्मचारियों के लिए एक आशा की किरण है जो अपनी कठिनाइयों का हल चाहते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि हमेशा सच्चाई की जीत होती है और न्यायिक प्रणाली हर किसी को न्याय दिलाने में सक्षम है।
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