नीरज पांडे की नई पेशकश 'औरों में कहां दम था': एक निराशाजनक प्रेम कहानी
फिल्म 'औरों में कहां दम था', जो कि प्रसिद्ध निर्देशिक नीरज पांडे द्वारा निर्देशित है, एक प्रेम कहानी है जिसमें अजय देवगन और तब्बू ने प्रमुख भूमिकाएं निभाई हैं। हाल ही में रिलीज हुई इस फिल्म का नाम सुनकर ही दर्शकों को काफी उम्मीदें थीं, लेकिन अफसोस की बात यह है कि यह कहानी अपने शीर्षक के ही अनुसार 'दम' खो चुकी मालूम होती है।
फिल्म की कहानी: अपराध और प्रेम का संगम
'औरों में कहां दम था' की कहानी कृष्ण (अजय देवगन) के इर्द-गिर्द घूमती है जो कि एक डबल मर्डर के मामले में 23 साल की सजा काट रहा है। उसकी ज़िंदगी के विभिन्न पहलुओं को दर्शाने के लिए फिल्म विभिन्न चरणों को दिखाती है। वहीं, वासुधा (तब्बू) उस समय की कहानी की दूसरी महत्वपूर्ण किरदार हैं, जिनके साथ कृष्ण का अतीत और वर्तमान जुड़ा हुआ है।
नवीनता या पुरानी कहानी का दोहराव?
फिल्म का एक प्रमुख भाग 2001 के समय का है, जिसमें शंतनु महेश्वरी और सई मांजरेकर ने प्रमुख किरदारों के युवा संस्करण निभाए हैं। यह अंश दर्शकों को फिल्म में जुड़ाव का एक प्रयास है लेकिन यह कहानी में नवीनता नहीं जोड़ पाता। कृष्ण और वासुधा की प्रेम कहानी में कोई विशेष या चौंकाने वाला मोड़ नहीं है।
प्रदर्शन: मजबूत भूमिकाएं लेकिन कमजोर पटकथा
अभिनेताओं ने अपने किरदारों को पूरी ईमानदारी से निभाया है, खासकर अजय देवगन और तब्बू ने अपने प्रदर्शन से प्रभावित करने की कोशिश की है। बावजूद इसके, फिल्म की गति और पटकथा में वह कसावट नहीं है जो दर्शकों को बांधे रख सके। पहला हिस्सा विशेष रूप से धीमा है और फ्लैशबैक का अत्यधिक उपयोग कहानी को और भी लंबा बना देता है।
संगीत और संपादन: नयापन की कमी
फिल्म का संगीत एमएम कीरवानी द्वारा रचा गया है लेकिन वह भी कोई खास जादू नहीं बिखेर पाती। संगीत ट्रैक औसत हैं और फिल्म की पटकथा में किसी भी विशेष भावनात्मक गहराई को जोड़ने में असमर्थ हैं। संपादन के मामले में भी फिल्म को थोड़ा और कसा जाना चाहिए था। शायद थोड़े संपादन द्वारा कहानी को अधिक रोचक बनाया जा सकता था।
समीक्षा का निष्कर्ष: ओवरड्रामैटिक और ओवरस्ट्रेच्ड
कुल मिलाकर 'औरों में कहां दम था' एक ऐसी फिल्म है जो अपने शीर्षक के अनुरूप ही दम खो देती है। कहानी और पटकथा की कमजोरियों के बावजूद, अभिनेता अपने चरम प्रयास में सफल होते हैं। फिल्म को देखकर ऐसा महसूस होता है कि कहीं न कहीं इसे 2007 की कॉमेडी 'वेलकम' से तुलना की जा सकती है, लेकिन इसके ड्रामाई तत्व दर्शकों को जोड़ने में असफल रहते हैं।
अंततः, 'औरों में कहां दम था' उन दर्शकों के लिए है जो अजय देवगन और तब्बू के फैंस हैं और उनके अभिनय का आनंद लेना चाहते हैं। लेकिन एक संपूर्ण और दमदार प्रेम कहानी की चाह रखने वाले दर्शकों को यह फिल्म निराश कर सकती है।
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