मुहर्रम – इस्लामिक कैलेंडर का पहला पवित्र महीना
जब हम मुहर्रम, इस्लामिक कैलेंडर का पहला और सबसे पवित्र महीना है, जिसमें कई धार्मिक अनुष्ठान होते हैं. Also known as मोह़र्रम, it marks the beginning of the Hijri year and sets the spiritual tone for the rest of the year. इस महीने की शुरुआत चाँद के देखे जाने पर निर्णय ली जाती है, इसलिए यह एक चंद्र-आधारित कैलेंडर का हिस्सा है। सुन्नी और शिया दोनों ही इस महीने को सम्मानित करते हैं, लेकिन शिया समुदाय में इसके आध्यात्मिक अर्थ अधिक गहरे होते हैं। कुरआन में भी इस महीने से संबंधित आयतें मौजूद हैं, जो धैर्य और ग़ुनाह से बचने की सीख देती हैं। साथ ही मुहर्रम की भावना पूरे मुस्लिम समुदाय में गूँजती है, जिससे लोग अपने आचरण को सुधारने का प्रयास करते हैं।
मुहर्रम के मुख्य पहलू
इस महीने का सबसे बड़ा दिन अषूरा, मुहर्रम के दसवें दिन मनाया जाता है, जहाँ इमाम हुसैन की शहादत को याद किया जाता है है। इमाम हुसैन, कुर्बानी के प्रतीक, कर्बला की लड़ाई में शहीद हुए को याद करके मुसलमान अपने धर्म के सिद्धांतों पर गौर करते हैं। इस यादगार को कर्बला, जेर्दन में वह स्थल जहाँ इमाम हुसैन ने अपनी आखिरी लड़ाई लड़ी के साथ जोड़ते हैं। अषूरा के दिन रक्षात्मक प्रवचन, तजिया की परेड और मातम के जलसे होते हैं, जिससे सामाजिक एकता और आत्म‑निरीक्षण को बढ़ावा मिलता है। इतिहास में कहा जाता है कि कर्बला की लड़ाई ने इस्लाम की नीतियों को मौलिक रूप से बदल दिया और आज भी यह शहादत न्याय, साहस और सामाजिक समानता का प्रतीक बनी हुई है।
रिवाज़ों में मातम, तजिया, दाहियोँ की बारात और ध्वनि‑संगीत शामिल हैं। मातम में लोग जमीन पर घुटनों के बल झुकते हुए इमाम हुसैन की पीड़ा को महसूस करते हैं, जबकि तजिया (गुजिया) अक्सर शहीदों की आकृति में रंगे‑बिरंगे ढांचे होते हैं जो सड़कों पर धकेले जाते हैं। कई क्षेत्रों में सरायाकी या "सजदे की आवाज़" वाली बटालिया बजती है, जो जुलूस को आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करती है। इस दौरान शिया और सुन्नी दोनों ही सामुदायिक सभा में एक साथ इफ्तार करते हैं, जिससे धार्मिक विभाजन कम होता है और एकजुटता बढ़ती है। कुछ जगहों पर लोग कट्टरता से बचने के लिए "सैफ़ी" नामक सुखद परम्पराएँ अपनाते हैं, जहाँ शोक को संगीत और नृत्य के साथ व्यक्त किया जाता है।
मुहर्रम का सामाजिक पहलू सिर्फ रिवाज़ तक सीमित नहीं है। कई शहरों में मुफ्त इफ्तार, अनाज वितरण और जरूरतमंदों को मदद की जाती है, जिससे यह महीना दया और सहानुभूति का भी प्रतीक बन जाता है। खाने‑पीने के तौर‑तरीके भी खास होते हैं—हलीब (बादाम का पेय), हलवा, समोसे और खजूरी जैसे व्यंजन बनाकर परिवार के साथ बांटे जाते हैं। इसके अलावा, साहित्यिक तौर पर मार्सिया (शोक‑कविता) लिखी जाती है, जहाँ शहादत की पीड़ा को काव्यात्मक रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इस तरह की परम्पराएँ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक आध्यात्मिक चेतना को बँधाए रखती हैं और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी सुदृढ़ करती हैं। युवा वर्ग भी इस माह में सामाजिक कार्यों में हिस्सा लेता है, जैसे रक्तदान शिविर या शरणार्थियों के लिए कपड़े इकट्ठा करना, जिससे मुहर्रम की सीखें व्यावहारिक रूप में दिखती हैं।
अब आप नीचे सूचीबद्ध लेखों में मुहर्रम से जुड़े विविध पहलुओं, ऐतिहासिक तथ्यों और आज के सामाजिक असर की गहरी झलक पा सकते हैं। चाहे आप धार्मिक इतिहास में रूचि रखते हों या सांस्कृतिक प्रथाओं को समझना चाहते हों, इस संग्रह में आपको वह जानकारी मिलेगी जो आपके सवालों का जवाब देगी और नई दृष्टि प्रदान करेगी। इस सामग्री को पढ़ते हुए आप मुहर्रम की भावना को और गहराई से समझ पाएँगे और अपने दैनिक जीवन में इसे अपनाने के तरीकों को पहचानेंगे।