आसादुद्दीन ओवैसी ने संसद में मचाया हड़कंप
हैदराबाद के नवनिर्वाचित लोकसभा सांसद और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इतेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रधान नेता आसादुद्दीन ओवैसी ने मंगलवार को शपथ समारोह के दौरान 'जय फिलिस्तीन' का नारा लगा कर एक नए विवाद को जन्म दिया है। ओवैसी को पहली बार नहीं बल्कि पाँचवीं बार संसद के लिए चुना गया है। उन्होंने उर्दू में शपथ ली और उसके बाद 'जय भीम, जय मीम, जय तेलंगाना' कहकर इसे पूरा किया। लेकिन 'जय फिलिस्तीन' का नारा लगाते ही संसद में हंगामा खड़ा हो गया।
शपथ के बाद की गई कार्रवाई
इस नारे से तुरंत ही सत्ता पक्ष के सदस्यों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। विवाद इतना बढ़ गया कि अध्यक्ष ने ओवैसी के नारे को रिकॉर्ड से हटाने का आदेश दिया। इस विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट के वकील विष्णु शंकर जैन ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को एक शिकायतपत्र भेजा जिसमे ओवैसी की संसद से अयोग्यता की मांग की गई है। वकील का कहना है कि ओवैसी ने शपथ के नियमों का उल्लंघन किया है।
पहले भी कर चुके हैं फिलिस्तीन का समर्थन
यह पहली बार नहीं है जब ओवैसी ने फिलिस्तीन के प्रति समर्थन जताया है। वह पहले भी कई बार मध्यपूर्वी संघर्ष और फिलिस्तीन पर अपनी अहद जताते रहे हैं। हाल ही में उन्होंने कश्मीर मुद्दे के साथ फिलिस्तीन की तुलना करते हुए भी बयान दिया था। ओवैसी का कहना है कि उनकी पार्टी एक न्यायपूर्ण संघर्ष का समर्थन कर रही है और इसे धर्म और राजनीति से ऊपर उठकर देखा जाना चाहिए।
फिलिस्तीन और भारत के बीच संबंध
फिलिस्तीन का मुद्दा ना केवल ओवैसी बल्कि कई अन्य नेता और राजनीतिक दलों के लिए भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है। भारत का फिलिस्तीन के साथ पुराने सांस्कृतिक और राजनीतिक संबंध हैं, जो हमेशा से ही भारत की विदेशी नीति का एक हिस्सा रहे हैं। भारत ने सदैव फिलिस्तीनियों के अधिकारों का समर्थन किया है और उनके संघर्ष को न्यायसंगत माना है। हालांकि, हाल के वर्षों में भारत ने इज़रायल के साथ भी रिश्तों में मजबूती लाई है, जिससे फिलिस्तीन को लेकर भारतीय राजनीति में विभाजन स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
संसद में शपथ लेने के नियम
संसद में शपथ लेने के सख्त नियम होते हैं। इसे संविधान में भी उल्लेखित किया गया है। शपथ लेने के समय किसी भी प्रकार के नारेबाजी या राजनीतिक बयानबाजी की अनुमति नहीं होती। शपथ के दौरान केवल संविधान के प्रति निष्ठा और देश की एकता को बनाए रखने की प्रतिज्ञा की जाती है। ओवैसी द्वारा उठाई गई नारेबाजी के विषय में यह कहा जा रहा है कि यह शपथ के नियमों के खिलाफ है और इसे अवैध माना जा सकता है।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
ओवैसी को प्राप्त समर्थन और उसके बाद हुए विवाद ने विपक्षी दलों को एक नए बहस का मुद्दा दे दिया है। विपक्ष का कहना है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मामला है और सत्ता पक्ष ओवैसी की आवाज को दबाने की कोशिश कर रहा है। वहीं, सत्ता पक्ष का दावा है कि संसद का शपथ समारोह एक गंभीर और संवैधानिक अवसर है और इसे राजनीतिक मंच नहीं बनाया जाना चाहिए।
अयोग्यता की मांग
वकील विष्णु शंकर जैन ने अपनी शिकायत में राष्ट्रपति से ओवैसी को संसद से अयोग्य घोषित करने की मांग की है। जैन का दावा है कि ओवैसी ने न केवल शपथ के नियमों का उल्लंघन किया है बल्कि संसद की गरिमा को भी ठेस पहुंचाई है। यह मामला अब राष्ट्रपति के पास है और देखना होगा कि वह इस पर क्या निर्णय लेते हैं।
ओवैसी की प्रतिक्रिया
बढ़ते विवाद और शिकायत के बाद ओवैसी ने अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने अपने नारे का समर्थन करते हुए कहा कि वह हमेशा से ही न्याय और समानता के पक्षधर रहे हैं। उनका कहना है कि फिलिस्तीन का समर्थन करना कोई अपराध नहीं है और उन्होंने संविधान या शपथ के किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं किया है।
मीडिया और सामाजिक प्रतिक्रिया
मीडिया और सोशल मीडिया में इस घटना को लेकर भारी चर्चा हो रही है। ओवैसी के समर्थक उनके साहसिक कदम की सराहना कर रहे हैं जबकि आलोचक उनकी आलोचना कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर #AsaduddinOwaisi, #JaiPalestine, और #ParliamentDisqualification ट्रेंड कर रहे हैं। इस घटना ने ना केवल राजनीतिक बल्कि आम जनता के बीच भी विभाजन पैदा कर दिया है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
मध्यपूर्वी देशों में भी इस घटना को लेकर कुछ हलचल देखी जा रही है। कुछ फिलिस्तीनी समूहों ने ओवैसी के समर्थन में बयान जारी किए हैं जबकि कुछ इज़रायली मीडिया ने इसे भारतीय राजनीति में एक नया मोड़ बताया है। यह देखना रोचक होगा कि इस घटना का अंतरराष्ट्रीय मंच पर क्या प्रभाव पड़ता है।
आसादुद्दीन ओवैसी का 'जय फिलिस्तीन' नारा भारतीय राजनीति में कितनी दूर जाता है और इसका उनके राजनीतिक करियर पर क्या असर होता है, यह आने वाले दिनों में स्पष्ट हो जाएगा। फिलहाल, संसद और राजनीतिक गलियारे में इस घटना ने एक नई बहस छेड़ दी है।
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