सरवपल्ली राधाकृष्णन: भारत के दूसरे राष्ट्रपति और शिक्षा के अग्रदूत

जब आप सरवपल्ली राधाकृष्णन, भारत के दूसरे राष्ट्रपति और एक विश्वप्रसिद्ध दार्शनिक जिन्होंने भारतीय दर्शन को पश्चिम के सामने समझाया के बारे में सुनते हैं, तो सिर्फ एक राष्ट्रपति की तस्वीर नहीं आती—एक ऐसा इंसान आता है जिसने किताबों के जरिए देश की सोच बदल दी। उनकी जिंदगी में शिक्षा बस एक नौकरी नहीं थी, बल्कि एक जिहाद था। उन्होंने कहा था, "शिक्षा वह चीज़ है जो बच्चे को इंसान बनाती है, न कि सिर्फ नौकरी देती है।" आज भी हमारे स्कूलों और विश्वविद्यालयों में उनके विचार जीवित हैं।

उनकी विरासत केवल राष्ट्रपति के पद तक सीमित नहीं है। शिक्षा, उनके लिए एक राष्ट्रीय दायित्व था, जिसे वे स्वतंत्रता के बाद भारत के निर्माण का आधार मानते थे। उन्होंने भारत के पहले विश्वविद्यालयों के निर्माण में भूमिका निभाई, और आज के शिक्षा नीति के ढांचे के बुनियादी तत्व उनके विचारों से निकले हैं। उन्होंने न केवल उर्दू, संस्कृत और अंग्रेजी को जाना, बल्कि उन्होंने इन्हें एक दूसरे के साथ जोड़ा। उनकी किताबें जैसे "भारतीय दर्शन" और "धर्म का अर्थ" पश्चिमी दर्शन के साथ भारतीय सोच को तुलना करती हैं—एक ऐसा काम जिसे आज भी विद्वान दुनिया भर में पढ़ते हैं।

भारतीय विचारक, उनके लिए एक शब्द नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी थी। वे बस एक अध्यापक नहीं थे, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने शिक्षा को एक जीवन शैली बना दिया। उन्होंने यह भी कहा था, "एक अच्छा शिक्षक वह है जो बच्चे को सिखाए नहीं, बल्कि उसे सोचने का तरीका दे।" आज जब हम देखते हैं कि हमारे बच्चे परीक्षा के लिए याद कर रहे हैं, तो उनकी बातें याद आती हैं। उनका जन्मदिन 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है—एक ऐसा त्योहार जो किसी भी राष्ट्रपति के लिए अनोखा है।

उनके बारे में सुनकर आप सोचेंगे—क्या आज के शिक्षक अभी भी उनकी आत्मा को जी रहे हैं? क्या हमारे विश्वविद्यालय उनके सपनों को देख रहे हैं? यही कारण है कि जब भी कोई लेख उनके नाम से जुड़ा होता है, तो वह सिर्फ एक ऐतिहासिक तथ्य नहीं, बल्कि एक चेतावनी भी होता है। नीचे आपको उनके जीवन, उनके विचार और उनकी विरासत से जुड़े लेख मिलेंगे—जिनमें शिक्षा के असली मतलब को फिर से खोजने की कोशिश की गई है।