बोनस शेयर – मुफ्त में मिलते शेयर, लेकिन समझदारी से लेना जरूरी

जब बात बोनस शेयर, कंपनी के मुनाफे को मौजूदा शेयरधारकों को अतिरिक्त शेयरों के रूप में वितरित करने की प्रक्रिया है, तो कई निवेशक इसे एक तरह की मुफ्त बोनस समझते हैं। इसे कभी‑कभी बॉनस इक्विटी भी कहा जाता है, जिससे आपका पोर्टफोलियो बिना अतिरिक्त पैसा खर्च किए बढ़ जाता है। लेकिन बोनस शेयर सिर्फ नाम से नहीं, इसके पीछे कुछ नियम और गणना होते हैं, जिनको समझे बिना आप अनचाहे जोखिम में पड़ सकते हैं।

बोनस शेयर का द्वार: IPO, सब्सक्रिप्शन और शेयर बाजार

बोनस शेयर अक्सर IPO, प्राथमिक सार्वजनिक रूप से शेयर बेचने की प्रक्रिया के बाद उभरते अवसरों से जुड़ते हैं। जब कंपनी पहली बार शेयर जारी करती है, तो निवेशकों को सब्सक्रिप्शन की अवधि में शेयर खरीदना पड़ता है। सफल सब्सक्रिप्शन के बाद, कंपनी के पास अतिरिक्त लाभ होता है और वह अपने शेयर पूँजी को बढ़ाने के लिए बोनस शेयर जारी कर सकती है। इस चरण में शेयर बाजार, जहाँ सभी स्टॉक ट्रेड होते हैं का रोल अहम हो जाता है—बोनस शेयरों की लिस्टिंग से उनकी तरलता बढ़ती है और बाजार में मूल्य निर्धारित होता है।

सरल शब्दों में कहा जाए तो: बोनस शेयर का मतलब है कि आप अपने मौजूदा शेयरों की बेनिफिट के रूप में अतिरिक्त शेयर प्राप्त करते हैं, जबकि IPO और सब्सक्रिप्शन ने इस बोनस के आधार को तैयार किया। इस संबंध को तीन मुख्य त्रिपुट्स में देखा जा सकता है—(1) बोनस शेयर कंपनी की आय का भाग शेयरधारकों को देता है, (2) शेयरधारकों को बोनस पाने के लिये सब्सक्रिप्शन प्रक्रिया में भाग लेना पड़ता है, (3) लिस्टिंग के बाद शेयर बाजार बोनस शेयरों को मूल्य देता है।

बोनस शेयर मिलने के बाद निवेशकों को कुछ प्रमुख बातों का ध्यान रखना चाहिए। सबसे पहले, बोनस शेयर का अनुपात—उदाहरण के तौर पर 1:5 बोनस मतलब हर पाँच मौजूदा शेयर पर एक नया शेयर मिलेगी। दूसरा, बोनस शेयरों पर कर नियम—भारत में बोनस शेयर पर कोई कैपिटल गेन टैक्स नहीं लगता, लेकिन यदि आप बाद में इन शेयरों को बेचते हैं तो उस पर टैक्स लागू हो सकता है। तीसरा, बोनस शेयरों की लिक्विडिटी—अगर निकट भविष्य में कंपनी का व्यापारिक प्रदर्शन स्थिर नहीं है तो बोनस शेयरों का ट्रेडिंग वॉल्यूम कम हो सकता है, जिससे एंट्री‑एग्जिट मुश्किल हो सकती है।

इसके अलावा, बोनस शेयर अक्सर ग्रे मार्केट प्रीमियम (GMP) या सार्वजनिक ऑफर प्राइस के साथ जुड़े होते हैं। जब लिस्टिंग शुरू होती है, तो निवेशक देख सकते हैं कि बोनस शेयर की कीमत मूल शेयर की तुलना में कैसे बनी है। अगर GMP उच्च है, तो बोनस शेयर का ट्रेंड सकारात्मक हो सकता है, लेकिन अगर प्राइस डिप्रेस हो रहा है, तो नवागत निवेशकों को सावधानी बरतनी चाहिए। अंत में, बोनस शेयर कंपनी की भविष्य की डिविडेंड पॉलिसी को भी प्रभावित कर सकते हैं—कभी‑कभी कंपनियां बोनस शेयर जारी करने के बाद डिविडेंड को कम या स्थिर रखती हैं, जिससे कुल रिटर्न पर असर पड़ता है।

अब आप समझ गए होंगे कि बोनस शेयर सिर्फ “फ्री शेयर” नहीं है, बल्कि यह IPO, सब्सक्रिप्शन और शेयर बाजार के बीच की एक जटिल कड़ी है। नीचे दी गई लेखों की सूची में हम विभिन्न बोनस शेयर के केस स्टडी, वर्तमान IPO के सब्सक्रिप्शन डेटा, और शेयर बाजार में इनकी कीमत कैसे बदलती है, इस पर विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करेंगे। तैयार रहें—आपकी निवेश यात्रा में ये जानकारी निश्चित ही मददगार साबित होगी।